आज मैं वीगनिज़्म (Veganism) पर यह ब्लॉग लिख रही हूँ, क्योंकि मुझे लगा कि यह बहुत ज़रूरी है।
आज का दिन और ये लेख — दोनों मेरे लिए खास हैं, क्योंकि मैं पहली बार उन बातों को शब्द दे रही हूँ जो मेरे मन में गूंजती रही हैं।
तो आज का मेरा ब्लॉग — “दूध से शुरू होकर करुणा तक जाने वाली एक यात्रा” — इन्हीं भावों पर है। दुनिया में पशु हिंसा एक सच्चाई बन चुकी है — एक ऐसी सच्चाई जिसे हम देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। बाजारों की भीड़, सुपरमार्केट की चमक, और रसोई का स्वाद — सब मिलकर किसी की पीड़ा को सामान्य बना देते हैं।
मेरे घर में कभी नॉनवेज तो दूर, प्याज़-लहसुन तक नहीं खाया गया। सात्विकता हमारी परंपरा थी। लेकिन फिर भी, दूध से जुड़ी चीज़ें जैसे चाय, ठंडे दूध वाले शेक्स, दही, छाछ, आइसक्रीम, रसगुल्ला, पनीर, खीर — ये सब हमारी थाली का हिस्सा थीं। लगता था इनके बिना खाना अधूरा है।

फिर एक दिन आचार्य प्रशांत जी को सुना — “दूध शुद्ध नहीं, दुःख से भरा होता है।”
शुरू में असहज लगा, लेकिन फिर उनकी बातों के अनुरूप ही इंटरनेट पर सच्चाई देखी। गायों को बार-बार गर्भवती किया जाता है ताकि वे दूध देती रहें। उनके नवजात बच्चों को उनसे छीन लिया जाता है, कई बार बछड़े भूखे मर जाते हैं। और जब वे दूध देना बंद कर देती हैं — उन्हें ‘काम का नहीं रहा’ समझकर बूचड़खाने भेज दिया जाता है।
क्या यही है वो दूध, जिसे हम ‘माँ का आशीर्वाद’ समझते हैं?
जिस दूध का रंग सफेद दिखता है, वो असल में सफेद नहीं, लाल होता है।
उसमें उस माँ का खून, आंसू और पीड़ा घुली होती है, जो इंसानों की भूख का शिकार बनी।
जब यह सच्चाई सामने आई, तो मैंने भी शुरुआत की — सबसे पहले चाय छोड़ी, फिर दूध से बनी चीज़ें। अब लगभग सब बंद है। आदतें समय लेती हैं, लेकिन दिशा मिल जाए तो रास्ता अपने आप बनने लगता है।
अब मैं जब किसी मिठाई को देखती हूँ, या जब कोई बटर-पनीर की थाली सजाता है, तो मन पूछता है —“क्या ये स्वाद किसी की ममता की कीमत पर नहीं आया?” हम कहते हैं — “हमने तो जानवर नहीं मारा”, लेकिन जो दूध, दही, घी हमारे घर आता है, उसकी हर बूँद में किसी माँ की चीख गूंजती है।
-विकल्प मौजूद हैं:
- करुणा से भरा भोजन, जो मन और आत्मा — दोनों को शांति दे
- सोया, नारियल, बादाम का दूध
- मूंगफली या काजू से बनी दही
- प्लांट-बेस्ड मिठाइयाँ
मैं आप सबसे एक विनती करती हूँ — कृपया एक बार रुककर सोचिए, महसूस कीजिए — इन मासूम प्राणियों को हर दिन कितनी पीड़ा से गुजरना पड़ता है। उनके लिए खड़े हों, उनके लिए बदलाव का हिस्सा बनें। हमारी एक थाली किसी का जीवन बदल सकती है। वीगन बनें — क्योंकि करुणा सिर्फ भावना नहीं, एक कर्म है।
जिड्डु कृष्णमूर्ति
उनके कई पत्रों और संवादों (जैसे Brockwood Park और Gstaad dialogues) में उन्होंने “sensitivity” और “compassion” के बारे में बात की, जहाँ वे कहते हैं कि यदि आप वास्तव में संवेदनशील और जागरूक हैं, तो आप दूसरों के कष्ट में भाग नहीं लेंगे – चाहे वे मानव हों या जानवर। यह दृष्टिकोण अप्रत्यक्ष रूप से उनके भोजन चयन में झलकता है।
एक निजी निवेदन
यदि मेरे इस ब्लॉग से आपको कुछ भी नया जानने या सोचने को मिला हो, तो यह मेरे लिए बहुत बड़ा आभार होगा।
मुझे पूरी उम्मीद है कि आप भी मेरी तरह एक कदम बढ़ाएंगे — वीगन जीवन की ओर।
ताकि पशु हिंसा के उस पाप की ज़ंजीर से बाहर निकला जा सके, जिसमें हम अनजाने में सहभागी बनते आ रहे हैं।
मैं चाहती हूँ कि आप भी इस अत्याचार की चेन को तोड़ें,
ताकि इन बहिष्कृत और बेबस प्राणियों पर टिकी हुई यह गंदी व्यापारिक व्यवस्था एक दिन हमेशा के लिए खत्म हो सके।
कोई दूसरा रास्ता नहीं है बस आपका एक फैसला ही सब कुछ बदल सकता है।
और अंत में बस यही कहूँगी कि —
अब समय आ गया है कि हम भी कोई अच्छा काम करें।
यही सच्चा कर्म है। यही सच्ची दया है।
जब हम किसी मजबूर प्राणी की पीड़ा को समझकर कुछ त्याग करते हैं —
वहीं से हमारी मानवता शुरू होती है। आपका इससे जुड़ना, आपके जीवन का सबसे सुंदर निर्णय बन सकता है।
कृपया आगे आइए, और इस करुणा के पथ पर मेरे साथ चलिए…
श्रीमद्भगवद्गीता से करुणा पर एक श्लोक
“अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।
निर्ममो निरहंकारः समदुःखसुखः क्षमी॥”
(श्रीमद्भगवद्गीता 12.13)
अर्थ:
जो सब प्राणियों से द्वेष-रहित है,
जो सबका मित्र है,
जिसमें करुणा है,
जो अहंकार और ममता से रहित है,
जो सुख-दुख में समान भाव रखता है — वही सच्चा भक्त है।
यह पाठ जीवनशैली में परिवर्तन और आदतों के बारे में है। लेखक ने चाय और डेयरी उत्पादों को छोड़कर अपने जीवन में सुधार लाने की कोशिश की है। आदतों को बदलने में समय लगता है, लेकिन एक बार दिशा मिल जाए तो रास्ता स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है। क्या यह संभव है कि छोटे-छोटे बदलावों से बड़े परिणाम मिल सकते हैं?
बिल्कुल — छोटे-छोटे बदलाव तभी बड़े परिणाम लाते हैं जब वे जागरूकता से जुड़ें हों। चाय या दूध छोड़ना केवल स्वास्थ्य का मामला नहीं, करुणा और विवेक से जीने का निर्णय है। जब हम देखना शुरू करते हैं कि हमारे स्वाद के पीछे किसी की पीड़ा है, तो बदलाव मुश्किल नहीं लगता। यह हिंसा के चक्र से बाहर आने की शुरुआत है — एक सच्चे जीवन की ओर पहला कदम।
जीवनशैली में बदलाव लाना वाकई एक प्रेरणादायक कदम है। चाय और डेयरी उत्पादों को छोड़कर लेखक ने न केवल स्वास्थ्य, बल्कि करुणा और जागरूकता का रास्ता चुना है। आदतों को बदलना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन एक बार दिशा मिल जाए तो रास्ता आसान हो जाता है। क्या यह सच है कि छोटे बदलावों से हम बड़े परिणाम प्राप्त कर सकते हैं?