आज मैं अपने “धरती की पुकार” सेक्शन के लिए अपना तीसरा ब्लॉग लिख रही हूँ। इसका विषय है: “पानी की आख़िरी बूँद – जल संकट और हमारी ज़िम्मेदारी”।
ज़रा आँखें बंद करके सोचिए — एक तपती दोपहर है। आप बहुत प्यासे हैं। नल खोलते हैं… लेकिन एक भी बूँद नहीं टपकती।
अब आप क्या करेंगे?
ये कोई कल्पना नहीं है। ये बहुत नज़दीक का सच है, जिसे हम तेजी से अपनी ओर बढ़ते देख रहे हैं। आज दुनिया के कई हिस्सों में लोग सचमुच आखिरी बूँद के लिए लड़ रहे हैं।
पानी — जिसे हम सबसे सस्ता और सबसे साधारण चीज़ समझते हैं, वही आज सबसे बड़ी दौलत बनता जा रहा है।
पानी का संकट: एक सच्चाई
- आज दुनिया में लगभग 2 अरब लोग ऐसे हैं जिन्हें साफ पीने का पानी नहीं मिलता। (WHO रिपोर्ट, 2024)
- भारत के 21 बड़े शहर जैसे दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई आदि अगले कुछ सालों में भूजल पूरी तरह खत्म कर सकते हैं। (NITI Aayog रिपोर्ट)
- हर साल 3.5 करोड़ लोग जलजनित बीमारियों से पीड़ित होते हैं। इनमें से लाखों जानें भी चली जाती हैं।
और इन सबका कारण सिर्फ प्राकृतिक कमी नहीं है, बल्कि हमारी लापरवाही भी है।
हम कैसे बिगाड़ते हैं पानी का संतुलन?
- नल खुले छोड़ना
- बारिश के पानी को बचाने के इंतज़ाम न करना
- नदियों को गंदा करना
- जरूरत से ज्यादा पानी बर्बाद करना
- जंगलों को काटना जिससे बारिश कम होती है
ये सब छोटी-छोटी गलतियाँ मिलकर आज एक बहुत बड़ा संकट खड़ा कर चुकी हैं।
क्या हम कुछ कर सकते हैं? हाँ, बिल्कुल कर सकते हैं!
छोटे कदम, बड़ी बचत:
- नल बंद करें: ब्रश करते समय, बर्तन धोते समय नल बंद रखें।
- रैन वाटर हार्वेस्टिंग करें: घरों, कॉलोनियों में बारिश के पानी को इकट्ठा करने की व्यवस्था करें।
- पेड़ लगाएँ: ज्यादा हरियाली मतलब ज्यादा बारिश।
- कम पानी में ज्यादा काम: स्मार्ट तरीके से नहाना, कपड़े धोना, सफाई करना।
- गंदगी से बचाएँ: नदियों, झीलों में कचरा न डालें।
छोटे-छोटे फैसलों से हम अगली पीढ़ी के लिए पानी बचा सकते हैं।
क्योंकि याद रखिए — जब आखिरी बूँद गिरेगी, तब पैसा, पद, तकनीक कुछ भी काम नहीं आएगा।
एक छोटी कहानी
मान लीजिए एक गाँव था जहाँ हर घर में एक बड़ा घड़ा रखा जाता था बारिश के पानी के लिए।
सालों तक सबने मेहनत से घड़े भरे। पानी बचाया। गाँव कभी प्यासा नहीं रहा।
लेकिन एक दिन लोग लापरवाह हो गए। “पानी तो है ही,” सोचते-सोचते वे घड़े खाली होने लगे।
फिर एक दिन आई भीषण गर्मी… और न कोई घड़ा भरा था, न कुआँ, न नदी।
आज हमारा शहर, हमारा देश भी उसी मोड़ पर है।
अगर हम अभी न संभले, तो कल पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा।
अंत में एक सवाल आपसे
क्या आप चाहेंगे कि आपके बच्चे सिर्फ किताबों में पढ़ें — “कभी धरती पर मीठा पानी हुआ करता था”?
या फिर आप अभी से कुछ छोटे-छोटे कदम उठाकर उन्हें एक हरी-भरी, पानी से भरी दुनिया देंगे?
फैसला आज लेना होगा। पानी बचाना सिर्फ सरकार या बड़ी संस्थाओं का काम नहीं, ये हर इंसान की जिम्मेदारी है — मेरी भी, आपकी भी। और अगर आप इस विषय को और गहराई से समझना चाहते हैं…

आचार्य प्रशांत जी की पुस्तक “जल और जीवन का रहस्य” अवश्य पढ़ें।
यह किताब न केवल जल संकट को उजागर करती है, बल्कि हमारे भीतर जागरूकता और ज़िम्मेदारी भी जगाती है।
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