मेरी स्वधर्म यात्रा: जब मैं आचार्य प्रशांत जी से मिली

गीता से पुराना रिश्ता, नया अनुभव

मेरी आध्यात्मिक यात्रा का सच्चा अनुभव भगवद गीता से जुड़ा है। पिछले 7-8 वर्षों में मैंने गीता के कई संस्करण पढ़े, लेकिन अब समझ रही हूँ कि यह केवल पढ़ाई नहीं, जीवन में जीने वाली आध्यात्मिक यात्रा है। मन में हमेशा यह प्रश्न रहा कि क्या गीता को केवल पढ़ना ही पर्याप्त है, या उसे जीवन में जिया भी जाना चाहिए? पढ़ाई तो होती रही, लेकिन कहीं कुछ अधूरा सा लगता रहा। ऐसा लगता था कि मैं गीता के उस अंतरतम अर्थ को नहीं पकड़ पा रही, जो जीवन को सच में बदल सके।

जब भीतर द्वंद्व गहराने लगा…

जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब मन में गहरी उलझनें थीं। एक ओर माता-पिता के बीच कलह, दूसरी ओर रिश्तेदारों और सहकर्मियों से उपेक्षा, और भीतर कहीं आत्म-संदेह और बेचैनी। ऐसे ही एक बेचैन क्षण में, YouTube पर अचानक एक छोटा सा वीडियो दिखा — आचार्य प्रशांत जी का एक शॉर्ट। मात्र कुछ ही सेकंड्स में उन्होंने ऐसी स्पष्ट, सच्ची और निर्मम बात कही कि मेरा मन दहल गया। मैंने पहली बार अनुभव किया कि कोई ऐसा भी है जो बिना दिखावे के, सीधे-सच्चे शब्दों में जीवन की सबसे बड़ी उलझनों को काट देता है। वही एक वीडियो मेरी एक नई यात्रा की शुरुआत बन गया।

आचार्य जी से मेरी गीता-यात्रा की शुरुआत

इसके बाद मैंने उनके और वीडियो देखने शुरू किए। धीरे-धीरे मैं उनके सत्रों से जुड़ने लगी। शुरुआत में डर था कि क्या मैं इतनी गहराई को समझ पाऊँगी? लेकिन जैसे-जैसे मैं नियमित बनी रही, वैसे-वैसे उनकी बातें भीतर उतरती चली गईं। आचार्य जी की भाषा सरल थी, लेकिन उनका दृष्टिकोण बहुत गहरा था। उन्होंने गीता को एक धार्मिक पुस्तक नहीं, बल्कि जीवन के प्रति एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण के रूप में प्रस्तुत किया। उनकी शैली उपदेश देने की नहीं थी, बल्कि भीतर जमी नींद को जगाने की थी।

शब्दों से जीवन की ओर

अब मैंने गीता को केवल पढ़ना नहीं, उसे जीवन में उतारना शुरू किया है। उनकी एक बात मेरे भीतर हमेशा गूंजती रहती है — “गीता को केवल पढ़ने के लिए मत पकड़ो, जियो उसे।” पहले जब जीवन में कोई उलझन आती थी, तो मैं टूट जाती थी। अब मैं स्थिर रह पाती हूँ। गीता के श्लोक और आचार्य जी की व्याख्याएँ मुझे स्पष्टता और शक्ति देती हैं। यह कोई मानसिक ज्ञान नहीं, बल्कि जीवन का आधार बनता जा रहा है।

क्यों आपको भी आचार्य जी को सुनना चाहिए?

अगर आप भी जीवन में स्पष्टता, दिशा और स्थिरता की तलाश में हैं, तो आचार्य जी आपको भीतर से झकझोर सकते हैं। वे कोई दर्शन नहीं सिखाते, वे आपको “आपसे” मिलाते हैं। उनके शब्द आत्मा को छूते हैं क्योंकि उनमें न कोई दिखावा है, न कोई स्वार्थ। वे केवल सच बोलते हैं — वही जो सुनना सबसे कठिन होता है, लेकिन सबसे ज़रूरी।

हम किसे सहयोग करते हैं — और क्यों नहीं करते?

हम बिना हिचकिचाहट फैशन, मनोरंजन, भोजन आदि पर पैसा खर्च करते हैं। लेकिन जैसे ही कोई संस्था या व्यक्ति हमें आत्मिक रोशनी देने की बात करता है, हम तुरंत संदेह करने लगते हैं — “कहीं ये पैसे के लिए तो नहीं?” यह सोच हमें रोकती है, लेकिन वास्तविकता यह है कि आचार्य जी और उनकी संस्था कोई व्यापार नहीं कर रही। वे हमें हमारे ही स्वधर्म से जोड़ने का कार्य कर रहे हैं।

सहयोग देना दान नहीं, आभार है

अगर हम उन्हें सहयोग देते हैं, तो वह हमारे ही लिए होता है — ताकि सत्य की वह आवाज़ जो हमें भीतर तक छूती है, और लोगों तक पहुँच सके। आज के युग में सत्य कहने वाले बहुत कम हैं, और उन्हें सुनने वाले उससे भी कम। ऐसे में अगर कोई संस्था हमारे जीवन में गहराई ला रही है, तो सहयोग देना दान नहीं, कृतज्ञता का प्रतीक है।

शब्दों का अंत, यात्रा की शुरुआत…

मुझे नहीं पता कि आप इस समय जीवन के किस मोड़ पर खड़े हैं। लेकिन अगर आप भी अपने भीतर की स्पष्टता, शांति और शक्ति की तलाश में हैं, तो मैं पूरे दिल से कहती हूँ — आचार्य प्रशांत जी को एक बार जरूर सुनिए। शायद वही आपकी भी “स्वधर्म यात्रा” की शुरुआत बन जाए…

🔽 इस फ़ॉर्म को भरिए और आचार्य जी के साथ स्वयं को जानने की यात्रा पर चलिए।


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