परिचय: गीता अनुभव की शुरुआत वहीं से हुई जहाँ जीवन ने एक मोड़ लिया

“Anta Asti Prarambh” — यह वाक्य मैंने आचार्य प्रशांत जी के एक गीता सत्र में सुना था। सुनते ही जैसे कोई अनकही बात दिल में उतर गई। क्या सच में जहाँ अंत होता है, वहीं से प्रारंभ होता है?

मेरा गीता अनुभव यही कहता है — हाँ, बिल्कुल। जब जीवन के एक अध्याय ने खुद-ब-खुद अपना अंत किया, तभी एक नए अध्याय की प्रस्तावना हुई।


क्या है “अन्त अस्ति प्रारम्भः” का भावार्थ?

शब्दों के अर्थ तो सीधे हैं:

  • अन्त – अन्त
  • अस्ति – है
  • प्रारम्भः – प्रारंभ

अर्थ: जहाँ कुछ समाप्त होता है, वहीं से कुछ शुरू भी होता है।

पर गहराई से देखें तो इसका अर्थ केवल बाहरी घटनाओं से नहीं, बल्कि भीतर की यात्रा से जुड़ा है। गीता अनुभव में ये बात बार-बार सामने आती है कि जब तक हम पुराने झूठों, आदतों और भ्रमों का अंत नहीं करते, तब तक नया जीवन प्रारंभ नहीं हो सकता।

जब मेरा एक अन्त हुआ…

कुछ साल पहले जीवन में एक बड़ा झटका लगा। एक ऐसा अवसर जिसे मैं जीवन का केंद्र मानती थी, मेरे हाथ से निकल गया। उस समय लगा कि सब कुछ खत्म हो गया। पर धीरे-धीरे समझ आया — कुछ खत्म नहीं हुआ, बल्कि कुछ शुरू हुआ है।

मैंने खुद को गहराई से देखने की शुरुआत की। यहीं से मेरी गीता अनुभव यात्रा शुरू हुई।

आचार्य प्रशांत जी का दृष्टिकोण: अन्त का सत्कार करो

आचार्य जी बार-बार कहते हैं:

“जो गिरता है, वही जन्म देता है।”

बीज को देखो — वह मिट्टी में सड़ता है, तब जाकर अंकुर फूटता है।
हमारे भीतर भी वही होता है। जब तक मोह, भ्रम, अपेक्षा और अहंकार का अंत नहीं होता, तब तक ज्ञान, प्रेम और सत्य का प्रारंभ नहीं हो सकता।

सत्य के उदाहरण जो इस बात को साबित करते हैं

1. सत्य का अन्त – धारणा का प्रारंभ:

जब मैंने यह स्वीकार किया कि मैं सब कुछ नहीं जानती — वहीं से सीखने की भूख जगी।

2. स्वयं की कल्पना का अन्त – साक्षी का प्रारंभ:

जब ‘मैं कैसी हूँ’, इस झूठी कहानी को छोड़ा, तभी भीतर की साक्षी-भावना जागी।

3. वासनाओं का अन्त – ध्यान का प्रारंभ:

जब इच्छा-आधारित जीवन से विरक्ति हुई, तभी ध्यान की गहराई में उतरना संभव हुआ।

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