भगवद गीता से मेरा जुड़ाव कोई नया नहीं है। पिछले 7-8 वर्षों में मैंने अलग-अलग भाष्यकारों द्वारा रचित लगभग 3 से 4 गीता संस्करण पढ़े। मन में हमेशा एक खोज रही — कि गीता को केवल शब्दों तक नहीं, बल्कि जीवन में कैसे उतारा जाए। पढ़ना तो होता रहा, लेकिन कहीं न कहीं ऐसा महसूस होता था कि मैं अभी भी गीता के अंतरतम रहस्य को नहीं पकड़ पा रही हूँ।
🌀 जब भीतर द्वंद्व गहराने लगा…
मेरे जीवन का एक ऐसा समय था जब मन में असमंजस, बेचैनी और अकेलेपन का तूफ़ान चल रहा था।
घर के भीतर — माता-पिता के बीच बढ़ते कलह,
रिश्तेदारों, सहपाठियों, सहयोगियों और पड़ोसियों के व्यवहार में उपेक्षा या कठोरता —
ये सब मेरे मन को भीतर तक विचलित कर रहे थे।
उसी समय YouTube पर एक छोटा सा वीडियो सामने आया —
आचार्य प्रशांत जी का एक short।
कुछ ही सेकंडों में उन्होंने ऐसी बात कह दी जो सीधे दिल को छू गई।
ऐसा लगा — “अरे! कोई तो है जो सच्चे अर्थों में समझता है… कोई तो है जो बिना दिखावे के, एकदम साफ़, सच्ची और स्वस्थ बात कर रहा है। ऐसा तो कोई नहीं बोलता…”
उस एक short ने मुझे उनसे जोड़ दिया।
उसके बाद एक-एक कर मैंने उनके और वीडियो देखने शुरू किए, फिर सत्रों से जुड़ गई।
📚 आचार्य प्रशांत जी से मेरी गीता-यात्रा की शुरुआत
जब मैंने उनके माध्यम से भगवद गीता के श्लोक सत्रों को सुनना शुरू किया, तो पहले थोड़ा डर था — क्या मैं इस गहराई को समझ पाऊँगी? लेकिन जैसे-जैसे मैं सत्रों में नियमित बनी रही, उनकी बातें आत्मा में उतरने लगीं।
उनकी भाषा सरल थी, लेकिन अर्थ बहुत गहरे। उनकी शैली ज्ञान बाँटने की नहीं, भीतर की नींद तोड़ने की थी। उन्होंने गीता को धार्मिक ग्रंथ नहीं, जीवन के लिए एक क्रांतिकारी मार्गदर्शन बनाकर सामने रखा।
🌿 शब्दों से जीवन की ओर
अब मैंने गीता की कई बातों को अपने जीवन में उतारना शुरू कर दिया है। उनकी एक बात दिल में बस गई है:
“गीता को केवल पढ़ने के लिए मत पकड़ो, जियो उसे। अब जब जीवन में कोई उलझन होती है, मैं पहले की तरह टूटती नहीं,
बल्कि गीता के श्लोक और आचार्य जी की व्याख्या मुझे स्थिरता देती है।
🕊️ क्यों आपको भी आचार्य जी को सुनना चाहिए?
अगर आप भी जीवन की उलझनों से घिरे हैं, अगर आप भी सच्ची समझ और आंतरिक स्पष्टता की तलाश में हैं — तो आचार्य प्रशांत जी की बातें आपको भीतर से हिला सकती हैं। वो कोई दर्शन नहीं देते — वो आपको आपसे मिलाते हैं।
पर एक बात जो मुझे हमेशा सोचने पर मजबूर करती है —
हम समाज में हर उस चीज़ पर पैसा खर्च करने को तैयार रहते हैं जो बाहरी सुख दे, चाहे वो फैशन हो, भोजन, मनोरंजन या कुछ और।
लेकिन जैसे ही कोई व्यक्ति या संस्था हमें भीतर की शुद्धता, स्पष्टता और दिशा देने की बात करती है,
हम तुरंत संदेह में आ जाते हैं —
“कहीं इसका कोई स्वार्थ तो नहीं? कहीं ये भी पैसे के लिए तो नहीं बोल रहा?”
आचार्य प्रशांत जी और उनकी संस्था कोई व्यापार नहीं कर रहे।
वे हमें जीवन का सत्य दे रहे हैं —
जो हमें भ्रम से निकाल कर हमारे वास्तविक धर्म, स्वधर्म की ओर ले जाता है।
और इसमें अगर हम कुछ अंशदान भी करें,
तो क्या उसमें कोई गलती है?
हमारे द्वारा दिया गया सहयोग सिर्फ उनके लिए नहीं,
हम सबके लिए होता है —
ताकि समाज में सत्य की बात ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचे।
क्योंकि आज का समय ऐसा है जहाँ सच्ची बात करने वाले बहुत कम हैं —
और सच्ची बात सुनने वाले और भी कम।
इसलिए मैं तो मानती हूँ —
अगर कोई व्यक्ति सच में हमारे जीवन के कल्याण के लिए कार्य कर रहा है,
तो वहाँ सहयोग देना सिर्फ “दान” नहीं, बल्कि एक आंतरिक आभार है —
जो हमारे ही जीवन को समृद्ध बनाता है।
“मुझे नहीं पता कि आप अभी किस मोड़ पर खड़े हैं,
लेकिन अगर आप भी अपने जीवन में स्पष्टता, शांति और शक्ति की तलाश में हैं —
तो मैं पूरे दिल से कह सकती हूँ कि आचार्य प्रशांत जी को सुनना आपके लिए एक नया दरवाज़ा खोल सकता है।
नीचे दिए गए लिंक से आप भी जुड़ सकते हैं…”