क्या जनसंख्या ही असली संकट है? – जनसंख्या विस्फोट और संसाधनों की लूट

जनसंख्या विस्फोट और संसाधनों की लूट

मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाती हूँ — एक बिल्कुल आम लड़की की, जो अपनी ज़िंदगी में बस अपने छोटे-छोटे सपनों में उलझी हुई थी। मैं एक टॉप-टियर मीडिया नौकरी में थी — दिनभर काम, फोन, टारगेट, मीटिंग्स, थकान… और बस यही समझती थी कि यही ज़िंदगी है। कभी सोचा ही नहीं था कि मेरी खपत, … Read more

अकेली नहीं है धरती, हम सब इससे जुड़े हैं – इंटरकनेक्टेड लाइफ और पर्यावरण चेतना

इंटरकनेक्टेड लाइफ और पर्यावरण चेतना

हम में से कई लोग सोचते हैं कि पर्यावरण बचाना, पेड़ लगाना या कचरा कम करना केवल “प्रकृति के लिए” होता है, जैसे कि वो कोई अलग चीज़ हो। पर सच्चाई यह है कि धरती और हम अलग-अलग नहीं हैं। हमारी हर सांस, हर घूंट पानी, हर निवाला भोजन धरती से आता है। धरती बीमार, … Read more

शाकाहारी जीवनशैली: एक समाधान – कैसे छोटे बदलाव बड़ा असर कर सकते हैं

कई बार मैं रात को बैठकर सोचती हूँ, क्या सच में हमारे खाने-पीने के छोटे-छोटे चुनाव धरती और जानवरों के लिए फर्क ला सकते हैं?और फिर दिल में एक हल्की-सी चुभन होती है — अगर मैं कोशिश करूँ, तो शायद हाँ! इसीलिए आज तुम्हारे साथ ये बात बाँटने का मन किया। न कोई बड़ा लेख, … Read more

मासूम जानवर, बेरहम व्यापार

मासूम जानवरों पर क्रूर व्यापार के खिलाफ करुणा और जागरूकता का संदेश

चमड़ा, ऊन, सर्कस, चिड़ियाघर और पशु शोषण की मौन चीखें “जब इंसान की इच्छाएँ हिंसक हो जाती हैं, तब सबसे पहले उसकी करुणा मरती है — और उसके बाद शोषण शुरू होता है।” हमारी दुनिया में रोज़ कुछ ऐसा घटता है, जिसे हमने ‘सामान्य’ कहकर अनदेखा करना सीख लिया है।चमड़े का बैग, ऊन की स्वेटर, … Read more

धरती गर्म क्यों हो रही है? ग्लोबल वार्मिंग और हमारी भागीदारी

आजकल जब भी हम बाहर निकलते हैं, तो गर्मी का अहसास कुछ ज़्यादा ही होता है। सूरज की तीव्रता जैसे हमसे बातें करने लगी है, और हमारे अंदर एक अजीब सा डर बैठ गया है। धरती गर्म क्यों हो रही है? इस सवाल का जवाब सरल नहीं है, लेकिन यह सवाल इतना महत्वपूर्ण है कि … Read more

क्यों चीखते हैं पेड़-पौधे भी?

विनाश और उपेक्षा से दुखी होते पेड़-पौधों का प्रतीक चित्र

– वनों की कटाई और हमारी आत्मा की कटाई आज मैं अपना नया ब्लॉग लिख रही हूँ जिसका विषय है — “क्यों चीखते हैं पेड़-पौधे भी?“आइए, इसे दिल से समझते हैं। जब पेड़ कटते हैं, तो केवल लकड़ी नहीं गिरती__ सोचिए, अगर आपके शरीर से धीरे-धीरे एक-एक अंग काटा जाए, तो क्या आप चुप रहेंगे? … Read more

पानी की आख़िरी बूँद– जल संकट और हमारी ज़िम्मेदारी

आज मैं अपने “धरती की पुकार” सेक्शन के लिए अपना तीसरा ब्लॉग लिख रही हूँ। इसका विषय है: “पानी की आख़िरी बूँद – जल संकट और हमारी ज़िम्मेदारी”। ज़रा आँखें बंद करके सोचिए — एक तपती दोपहर है। आप बहुत प्यासे हैं। नल खोलते हैं… लेकिन एक भी बूँद नहीं टपकती।अब आप क्या करेंगे? ये … Read more

“एक ग्लास दूध, और एक दिल की पुकार”

"एक ग्लास दूध, और एक दिल की पुकार"

आज मैं वीगनिज़्म (Veganism) पर यह ब्लॉग लिख रही हूँ, क्योंकि मुझे लगा कि यह बहुत ज़रूरी है।आज का दिन और ये लेख — दोनों मेरे लिए खास हैं, क्योंकि मैं पहली बार उन बातों को शब्द दे रही हूँ जो मेरे मन में गूंजती रही हैं।तो आज का मेरा ब्लॉग — “दूध से शुरू … Read more

धरती की पुकार: क्या तुम मुझे सुन सकते हो?

“मैं मिट्टी हूँ, पानी हूँ, हवा हूँ। मैं तुम्हारा घर हूँ — लेकिन आज मैं थकी हूँ, घायल हूँ, और शायद आख़िरी बार पुकार रही हूँ। क्या तुम सुन सकते हो?” कभी जिस धरती ने तुम्हें माँ की तरह संभाला, आज वही धरती कराह रही है। पेड़ जो छाया देते थे, अब गिनती के रह … Read more