धरती की पुकार: क्या तुम मुझे सुन सकते हो?

“मैं मिट्टी हूँ, पानी हूँ, हवा हूँ। मैं तुम्हारा घर हूँ — लेकिन आज मैं थकी हूँ, घायल हूँ, और शायद आख़िरी बार पुकार रही हूँ। क्या तुम सुन सकते हो?” कभी जिस धरती ने तुम्हें माँ की तरह संभाला, आज वही धरती कराह रही है। पेड़ जो छाया देते थे, अब गिनती के रह … Read more

मेरी स्वधर्म यात्रा: जब मैं आचार्य प्रशांत जी से मिली

एक 35 वर्षीय महिला पुस्तक पढ़ते-पढ़ते गहरे विचारों में डूबी हुई – आत्मचिंतन और जीवन के अर्थ की खोज में लीन

भगवद गीता से मेरा जुड़ाव कोई नया नहीं है। पिछले 7-8 वर्षों में मैंने अलग-अलग भाष्यकारों द्वारा रचित लगभग 3 से 4 गीता संस्करण पढ़े। मन में हमेशा एक खोज रही — कि गीता को केवल शब्दों तक नहीं, बल्कि जीवन में कैसे उतारा जाए। पढ़ना तो होता रहा, लेकिन कहीं न कहीं ऐसा महसूस … Read more