क्या जनसंख्या ही असली संकट है? – जनसंख्या विस्फोट और संसाधनों की लूट

जनसंख्या विस्फोट और संसाधनों की लूट

मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाती हूँ — एक बिल्कुल आम लड़की की, जो अपनी ज़िंदगी में बस अपने छोटे-छोटे सपनों में उलझी हुई थी। मैं एक टॉप-टियर मीडिया नौकरी में थी — दिनभर काम, फोन, टारगेट, मीटिंग्स, थकान… और बस यही समझती थी कि यही ज़िंदगी है। कभी सोचा ही नहीं था कि मेरी खपत, … Read more

शाकाहारी जीवनशैली: एक समाधान – कैसे छोटे बदलाव बड़ा असर कर सकते हैं

कई बार मैं रात को बैठकर सोचती हूँ, क्या सच में हमारे खाने-पीने के छोटे-छोटे चुनाव धरती और जानवरों के लिए फर्क ला सकते हैं?और फिर दिल में एक हल्की-सी चुभन होती है — अगर मैं कोशिश करूँ, तो शायद हाँ! इसीलिए आज तुम्हारे साथ ये बात बाँटने का मन किया। न कोई बड़ा लेख, … Read more

धरती गर्म क्यों हो रही है? ग्लोबल वार्मिंग और हमारी भागीदारी

आजकल जब भी हम बाहर निकलते हैं, तो गर्मी का अहसास कुछ ज़्यादा ही होता है। सूरज की तीव्रता जैसे हमसे बातें करने लगी है, और हमारे अंदर एक अजीब सा डर बैठ गया है। धरती गर्म क्यों हो रही है? इस सवाल का जवाब सरल नहीं है, लेकिन यह सवाल इतना महत्वपूर्ण है कि … Read more

क्यों चीखते हैं पेड़-पौधे भी?

– वनों की कटाई और हमारी आत्मा की कटाई आज मैं अपना नया ब्लॉग लिख रही हूँ जिसका विषय है — “क्यों चीखती हैं पेड़-पौधे भी?“आइए, इसे दिल से समझते हैं। जब पेड़ कटते हैं, तो केवल लकड़ी नहीं गिरती__ सोचिए, अगर आपके शरीर से धीरे-धीरे एक-एक अंग काटा जाए, तो क्या आप चुप रहेंगे? … Read more

पानी की आख़िरी बूँद– जल संकट और हमारी ज़िम्मेदारी

आज मैं अपने “धरती की पुकार” सेक्शन के लिए अपना तीसरा ब्लॉग लिख रही हूँ। इसका विषय है: “पानी की आख़िरी बूँद – जल संकट और हमारी ज़िम्मेदारी”। ज़रा आँखें बंद करके सोचिए — एक तपती दोपहर है। आप बहुत प्यासे हैं। नल खोलते हैं… लेकिन एक भी बूँद नहीं टपकती।अब आप क्या करेंगे? ये … Read more

श्लोक (अध्याय 2, श्लोक 11):

"भगवान श्रीकृष्ण शांति से एक चिंतित साधिका को जीवन और मृत्यु के रहस्यों की शिक्षा देते हुए, सूर्यास्त के समय प्राकृतिक पृष्ठभूमि में।"

श्रीभगवानुवाचअशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः॥ “तुम ऐसे लोगों के लिए शोक कर रहे हो जो शोक के योग्य नहीं हैं, और ज्ञानियों की तरह बातें कर रहे हो। किंतु ज्ञानी न तो मृत (जिसमें प्राण नहीं हैं) के लिए शोक करते हैं, और न ही जीवित (जिसमें प्राण हैं) के लिए।” शोक करना सही है? … Read more

“एक ग्लास दूध, और एक दिल की पुकार”

"एक ग्लास दूध, और एक दिल की पुकार"

आज मैं वीगनिज़्म (Veganism) पर यह ब्लॉग लिख रही हूँ, क्योंकि मुझे लगा कि यह बहुत ज़रूरी है।आज का दिन और ये लेख — दोनों मेरे लिए खास हैं, क्योंकि मैं पहली बार उन बातों को शब्द दे रही हूँ जो मेरे मन में गूंजती रही हैं।तो आज का मेरा ब्लॉग — “दूध से शुरू … Read more

धरती की पुकार: क्या तुम मुझे सुन सकते हो?

“मैं मिट्टी हूँ, पानी हूँ, हवा हूँ। मैं तुम्हारा घर हूँ — लेकिन आज मैं थकी हूँ, घायल हूँ, और शायद आख़िरी बार पुकार रही हूँ। क्या तुम सुन सकते हो?” कभी जिस धरती ने तुम्हें माँ की तरह संभाला, आज वही धरती कराह रही है। पेड़ जो छाया देते थे, अब गिनती के रह … Read more

यह सारांश पूरे पहले अध्याय का है: अर्जुन की असल समस्या का उद्घाटन।

अर्जुन की असल समस्या पर चित्र

अर्जुन की असल समस्या (भूमिका)– कुरुक्षेत्र की लड़ाई से पहले अर्जुन मन-ही-मन घबरा गया था।– उसे अपने ही रिश्तेदारों, गुरुजनों, मित्रों और धर्म के पक्षियों के खिलाफ लड़ना था।– इस युद्ध में जीत-हार की चिंता नहीं थी, बल्कि “क्यों लड़ूं?” का प्रश्न उसे घेर रहा था।– उसने सोचा—“यदि मैं अपने बंधुओं को मारूंगा तो समाज, … Read more

🌸 गीता की ओर पहला क़दम… 🌸

आज मैं उस महान ग्रंथ की ओर पहला क़दम रख रही हूँ, जिसने मुझे भीतर से झकझोरा, समझाया और बदलना शुरू किया — भगवद गीता। लेकिन ये वही गीता नहीं है जो हमने किताबों में रटकर छोड़ दी थी। यह वह जीवंत गीता है जिसे मैं आचार्य प्रशांत जी से समझ रही हूँ — बिना … Read more